बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया . ! मेरी अभिव्यक्ति ! तू अगर चाहे झुकेगा आसमां भी सामने, दुनिया तेरे आगे झुककर सलाम करेगी . जो आज न पहचान सके तेरी काबिलियत कल उनकी पीढियां तक इस्तेकबाल करेंगी . पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी , खुशियों का बवंडर पल भर में थम गया .
चाहत थी बेटा आकर इस वंश को बढ़ाये ,
रखवाई का ही काम उल्टा सिर पे पड़ गया .
बेटा जने जो माता ये है पिता का पौरुष , बेटी जनम का पत्थर माँ के सिर पे बंध गया .
गर्मी चढ़ी थी आकर घर में सभी सिरों पर ,
बेडा गर्क ही जैसे उनके कुल का हो गया .
गर्दिश के दिन थे आये ऐसे उमड़-घुमड़ कर , बेटी का गर्द माँ को गर्दाबाद कर गया .
बेठी है मायके में ले बेटी को है रोटी , झेला जो माँ ने मुझको भी वो सहना पड़ गया . न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी , बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया . न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की , बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .
सदियाँ गुजर गयी हैं ज़माना बदल गया , बेटी का सुख रुढियों की बलि चढ़ गया . सच्चाई ये जहाँ की देखे है ”शालिनी ” बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया . शालिनी कौशिक [कौशल]शब्दार्थ-गर्दाबाद-उजाड़ ,विनाश
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