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दामिनी की मूक शहादत
जुर्म मेरा जहाँ में इतना बन नारी मैं जन्म पा गयी ,
जुर्रत पर मेरी इतनी सी जुल्मी दुनिया ज़ब्र पे आ गयी .
जब्रन मुझपर हुक्म चलकर जहाँगीर ये बनते फिरते ,
जांनिसार ये फितरत मेरी जानशीन इन्हें बना गयी .
जूरी बनकर करे ज़ोरडम घर की मुझे जीनत बतलाएं ,
जेबी बनाकर जादूगरी ये जौहर मुझसे खूब करा गयी .
जिस्म से जिससे जिनगी पाते जिनाकार उसके बन जाएँ ,
इनकी जनावर करतूतें ही ज़हरी बनकर मुझे खा गयी .
जांबाजी है वहीँ पे जायज़ जाहिली न समझी जाये ,
जाहिर इनकी जुल्मी हरकतें ज्वालामुखी हैं मुझे बना गयी .
बहुत सहा है नहीं सहूँगी ,ज़ोर जुल्म न झेलूंगी ,
दामिनी की मूक शहादत ”शालिनी”को राह दिखा गयी .
दैनिक जनवाणी में प्रकाशित |
शब्दार्थ :-जुर्म -अपराध ,जुर्रत-साहस ,ज़ब्र -जुल्म ,जब्रन-जबरदस्ती से ,जर्दम-तानाशाही ,जीनत-शोभा ,जिनाकार-परस्त्री गमन करने वाला ,जानवर-जानवर ,जाहिली -मुर्खता ,जेबी-जेब में रखने लायक ,जूरी -पंचों का मंडल ,जहाँगीर-विश्व विजयी, जानशीन-अधिकारी की अनुपस्थिति में उसके पद पर बैठने वाला व्यक्ति .
शालिनी कौशिक [एडवोकेट]
[कौशल]
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