” बंटवारे की राजनीति ने देश अपाहिज बना दिया , जो अंग्रेज नहीं कर पाए वो हमने करके दिखा दिया -अज्ञात ”
भारत वर्ष एक ऐसा देश जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और ये तो भारत संविधान निर्माण के पश्चात् हुआ उससे बहुत सदियाँ पहले से भारत विश्व की विभिन्न संस्कृतियों का शरणदाता रहा .हमारा इतिहास बहुत सुदृढ़ है और नई पुरानी बहुत सी संस्कृतियों के सम्मिलित होने पर भी इसका अस्तित्व कभी विच्छिन्न नहीं हुआ बल्कि एक विशाल समुंद्र की तरह और भी विस्तृत होता गया और यही इतिहास कहता है –
”भारत में वर्तमान में अधिकांश जनसँख्या [आदिवासी को छोड़कर]आर्यों की है .ये भारत के मूल निवासी नहीं हैं .इनके आगमन के बारे में विद्वानों में काफी मतभेद हैं .आधुनिक इतिहासवेत्ताओं के अनुसार इनका मूल निवास उत्तरी-पूर्वी ईरान ,कैस्पियन सागर के समीप क्षेत्र या मध्य एशिया ,यूरोप के आल्पस क्षेत्र में था जबकि दूसरे कुछ इसे अंग्रेजी हुक्मरानों का तर्क बताते हुए आर्यों को यहाँ का मूल निवासी मानते हैं .
वैदिक आर्यों ने उत्तर पश्चिम की ओर बहने वाली नदी को सिन्धु कहकर पुकारा बाद में ईरानियों ने इसे ही हिन्दू नदी का नाम दिया और इसी [सिन्धु’हिन्दू’]नदी के नाम पर इस देश का नाम हिंदुस्तान पड़ा . यूनानियों और रोम निवासियों ने क्योंकि इस नदी को ‘इंडस’कहा ,इसलिए उसी के आधार पर इस देश का नाम ‘इंडिया ‘पड़ा .”-प्राचीन भारतीय इतिहास -भारत ज्ञान कोष की प्रस्तुत जानकारी ”
भारत ज्ञान कोष कहता है कि सिन्धु नदी को यूनानियों और रोम निवासियों ने इंडस कहा और उसके आधार पर हमारे देश का नाम इंडिया पड़ा .इंडिया जो गांवों और शहरों में कोई विभाजन नहीं करता हुआ सभी को अपने साथ लेकर चलता है किन्तु देश का स्वयं सेवक कहने का दम भरने वाले आर.एस.एस.प्रमुख देश के वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा को ठेंगा दिखाते हुए यहाँ भी विभाजन ले आते हैं और कहते हैं -”इस तरह की घटनाएँ इंडिया [शहरों]में होती हैं ,भारत[गावों]में नहीं.”
आखिर इतना अल्प ज्ञान लेकर और केवल विदेशी विरोध की भावना से ग्रसित होकर वे इतने संवेदनशील मुद्दे पर अपने विचार किस अधिकार से रखते हैं ?देश के इतने विशिष्ट संगठन के प्रमुख होकर क्या देश के वर्तमान संकट से निपटने के लिए वे अपने राजनीति को ही प्रमुखता देते हैं ?देश के इस भयावह मुद्दे पर ऐसे वक्तव्य देने का हक़ उन्हें कहाँ से मिला ”भारतीय संविधान”से या ”इंडियन कोन्सटीट्यूशन ”से ?
क्या समाचार पत्रों में निरंतर छपते हुए ये समाचार उनके कथित भारत के नहीं हैं – १-गाँव पांचली बुजुर्ग ,सरूरपुर मेरठ में धर्म स्थल में एक किशोरी से गैंगरेप -४ जनवरी ,मुख्य पृष्ठ अमर उजाला . २-गाँव जिटकरी ,थाना सरधना मेरठ के युवक द्वारा शामली की किशोरी को शादी का झांसा दे ३ साल तक यौन शोषण -५ जनवरी २०१३ ,दैनिक जागरण /शामली जागरण ३-गाँव तिसंग ,जानसठ ,किशोरी से सामूहिक दुष्कर्म ,५ जनवरी २०१३ ,दैनिक जागरण/शामली मुजफ्फरनगर जागरण .
क्या ये गाँव मोहन भागवत जी के भारत के नहीं हैं ? आज सारा भारत ,सारी इंडिया ऐसी घटनाओं से आक्रांत हैं ,त्रस्त हैं और यदि वे केवल राजनेता हैं तो ही उनसे ऐसे ही वक्तव्यों की ही उम्मीद की जा सकती है किन्तु यदि वे वास्तव में स्वयं सेवक हैं ,सच्चे भारतीय हैं और सबसे पहले एक इन्सान हैं तो ऐसी घटनाएँ भले ही शहरों में हों या गांवों में वे इन्हें समस्त देश की ही मानेंगे और इनमे इतना तुच्छ विश्लेषण कर अपनी जिम्मेदारी जो एक नागरिक के तौर पर है उससे मुहं नहीं मोडेंगे.
जैसे कि कवि गोपाल दास ”नीरज”जी ने कहा है- ”अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाये , जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाये . आग बहती है यहाँ गंगा में भी ,झेलम में भी, कोई बतलाये कहाँ जाके नहाया जाये . मेरे दुःख दर्द का तुझ पर हो असर ऐसा , मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाये .”
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