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मरम्मत करनी है कसकर दरिन्दे हर शैतान की

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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मज़म्मत करनी है मिलकर बिगड़ते इस माहौल की ,
मरम्मत करनी है कसकर दरिन्दे हर शैतान की.


हमें न खौफ मर्दों से न डर इन दहशतगर्दों से ,
मुआफी देनी नहीं है अब मुजरिमाना किसी काम की.


मुकम्मल रखती शख्सियत नहीं चाहत मदद की है ,
मुकर्रम करनी है हालत हमें अपने सम्मान की.

गलीज़ है वो हर इन्सां जिना का ख्याल जो रखे ,
मुखन्नस कर देना उसको ख्वाहिश ये यहाँ सब की.


बहुत गम झेले औरत ने बहुत हासिल किये  हैं दर्द ,
फजीहत करके रख देगी मुकाबिल हर ज़ल्लाद की .

भरी है आज गुस्से में धधकती एक वो ज्वाला है ,
खाक कर देगी ”शालिनी”सल्तनत इन हैवानों की.

शालिनी कौशिक
[कौशल]

शब्दार्थ-मज़म्मत-निंदा ,मरम्मत-शारीरिक दंड ,मुकर्रम-सम्मानित,मशक्कत-कड़ी मेहनत,मुकाबिल -सामने वाला ,गलीज़-अपवित्र,मुखन्नस-नपुंसक,मुकम्मल-सम्पूर्ण ,जिना-व्यभिचार


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