छोटे से छोटा घर हो या बड़े से बड़ा राष्ट्र समुचित व्यवस्था के बिना अराजकता व् बिखराहट से भरा नज़र आता है .व्यवस्था महत्वपूर्ण स्थान रखती है किसी घर को सफल परिवार बनाने में और किसी देश को विकास की राह पर चलाने में .ये व्यवस्था जिस नियम पर आधारित हो अपने काम सुचारू ढंग से करती है उसे कानून कहते हैं .कानून के बारे में कहा गया है –
”law is nothing but commonsense .”
अर्थात कानून सामान्य समझ से अतिरिक्त और कुछ नहीं है .ये एक सामान्य समझ ही तो है कि घर में माँ-बाप का हुक्म चलता है और माँ से भी ज्यादा पिता का ,माँ स्वयं पिता के हुक्म के आधीन काम करती है .ऐसा भी नहीं है कि इसमें कोई गलत बात है .घर की व्यवस्था बनाये रखने को ये एक सामान्य समझ के अनुपालन में किया जाता है क्योंकि सभी का हुक्म चलना घर की नाव में छेद कर सकता है और उसकी नैय्या डुबो सकता है .ऐसे ही देश के सञ्चालन का अधिकार कहें या दायित्व संविधान को सौंपा गया है .देश में संविधान को सर्वोच्च कानून का दर्ज दिया गया है और इसके संरक्षण का दायित्व सर्वोच्च न्यायालय को सौंपा गया है .
संविधान के अनुच्छेद १४१ में कहा गया है – ”उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर आबद्ध्कर होगी .” और इसका स्पष्ट तात्पर्य यह है कि भारत क्षेत्र स्थित समस्त न्यायालय इसके निर्णयों को मानने के लिए बाध्य हैं परन्तु उच्चतम न्यायालय स्वयं अपने निर्णयों से बाध्य नहीं है और इन्हें उलट सकता है . साथ ही ,अनुच्छेद १४४ कहता है – ”कि भारत के राज्यक्षेत्र के सभी सिविल और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य करेंगे .”
डॉ.दिनेश कुमार बनाम मोतीलाल मेडिकल कॉलेज ,इलाहाबाद [१९९०]४ एस.सी.सी.६२७ के प्रकरण में अभिनिर्धारित किया गया है कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय को अनदेखा और उसकी अवज्ञा नहीं करनी चाहिए अपितु अत्यन्त सतर्कता के साथ उसका अनुपालन किया जाना चाहिए .” यहाँ संविधान के इन अनुच्छेदों का उल्लेख करना इसलिए आवश्यक हुआ क्योंकि ये मात्र अनुच्छेद ही बनकर रह गए हैं .उच्चतम न्यायालय के निर्णय मात्र मार्गदर्शक बनकर रह गए हैं अनुसरण में इनका कोई अस्तित्व दृष्टिगोचर नहीं होता . एक देश जहाँ पर्याप्त कानून है व्यवस्था कराने वाले लगभग सभी स्तम्भ है वहां कानून व्यवस्था कहीं दिखाई नहीं देती .अभी हाल ही में दिल्ली गैंगरेप में प्रयुक्त बस में काले शीशों के इस्तेमाल की बात सामने आई जबकि उच्चतम न्यायालय अपने हाल के ही एक निर्णय में वाहनों में काले शीशों को प्रतिबंधित कर चुका है –
SC orders complete ban on tinted car glasses, sets May 4 as deadline
और ये हाल तो वहां के है जहाँ उच्चतम न्यायालय एकमात्र स्थापित खंडपीठ के रूप में कार्य करता है .देश में अन्य जगहों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के हश्र का स्वतः अंदाजा लगाया जा सकता है .गाड़ियों पर काले शीशे ज्यों के त्यों लगे हैं और उन्हें हटाने के सम्बन्ध में कोई कार्यवाही अनुच्छेद १४४ के अनुपालन में नहीं की जा रही है .
सार्वजानिक स्थलों पर धूम्रपान की २ अक्टूबर २००८ से मनाही है और स्वयं कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गयी है वे ही उसका उल्लंघन कर रहे हैं .दहेज़ लेना व् देना दोनों अपराध है और दोनों काम हो रहे हैं .सार्वजानिक स्थलों पर कूड़ा आदि डालने का निषेध है और खुलेआम सार्वजानिक स्थलों को गन्दा किया जाता है और ऐसा करने पर किसी के मन में कोई खौफ नहीं है .बलात्कार के वर्तमान मामले को देखते हुए फाँसी की मांग इस अपराध के अपराधियों के लिए की गयी हालाँकि अब ”निर्भया ”की मृत्यु हो जाने के कारण अपराध बलात्कार के साथ हत्या में भी तब्दील हो गया है ऐसे में वे स्वयं ही फाँसी के करीब पहुँच गए हैं किन्तु पहले भी जो अपराध उन्होंने किया था उसमे आजीवन कारावास या दस वर्ष के कठोर कारावास का प्रावधान है किन्तु उनके बुलंद हौसले ही बता रहे थे कि उन्हें कानून का कोई खौफ नहीं है .
आखिर ऐसा क्यूं है कि कानून की सुलभता वाले इस देश में कानून का खौफ किसी के दिलो दिमाग पर नहीं है कारण केवल एक है -कानून बनाने वाले व् कानून का पालन करने वाले अपने कर्तव्य से विमुख हो चुके हैं .न्याय बिक रहा है और वकील व् जज दोनों ही बहुत अधिक संख्या में ”दलाल ” की भूमिका में आ चुके हैं .हर जगह सेंध लगा चुका भ्रष्टाचार कानून के क्षेत्र में गहरी पैंठ बना चुका है .पद बिक रहे हैं या फिर अपने चहेतों में रेवड़ियों की तरह से बांटे जा रहे हैं.शरीफ में डर और अपराधियों में जीत के हौसले बुलंद हो रहे हैं .जिस मामले को लेकर दिल्ली दहली हुई है वैसे ही मामले उसी समय में जम्मू-कश्मीर ,मणिपुर ,उत्तर प्रदेश .पश्चिमी बंगाल लगभग सभी राज्यों में हो रहे हैं और किसी को भी कानून का कोई खौफ नज़र नहीं आ रहा है . ऐसे में यदि स्थिति पर काबू पाना है तो सर्वप्रथम व्यवस्था में सुधार लाना होगा कानून का शासन कायम करना होगा और यह तभी संभव है जब भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जाये .योग्यता को आगे बढ़ने के समुचित अवसर दिया जाएँ ,आरक्षण प्रमोशन में ही क्या हर क्षेत्र में समाप्त किया जाये जिसमे योग्यता है वह अपनी योग्यता के दम पर आगे बढे अब देश को स्वतंत्र हुए ६५ वर्ष से ऊपर हो चुके हैं अब किसी को आगे बढ़ने के लिए इस बैसाखी की ज़रुरत नहीं है .युवा वर्ग देश की नैय्या के खेवनहार हैं और वर्तमान मामले को लेकर युवाओं की जागरूकता ने सरकार को ये दिखा दिया है कि अब अब अन्याय नहीं सहा जायेगा .युवाओं की उग्रता और भटकाव दोनों ही ये बता रहे हैं कि व्यवस्था डगमगा रही है और यदि इस व्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाना है तो ये सब कुछ भारत सरकार को करना ही होगा क्योंकि कहा भी है –
”दबी आवाज़ को गर ढंग से उभारा न गया , सूने आँगन को गर ढंग से बुहारा न गया , ए!सियासत के सरपरस्तों जरा गौर से सुन लो , जलजला आने को है गर उनको पुकारा न गया .” शालिनी कौशिक [कौशल ]
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