Menu
blogid : 12172 postid : 39

अरविन्द की पार्टी :क्या अलग है इसमें -कुछ नहीं

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
  • 791 Posts
  • 2130 Comments

अरविन्द की पार्टी :क्या अलग है इसमें -कुछ नहीं

”सुविधाएँ सारी घर में लाने के वास्ते , लोगों ने बेच डाला अपना ईमान अब ,

आखिर परों को काटकर सैय्याद ने कहा ,हे आसमां खुली भरो ऊँची उड़ान अब .”

नहीं जानती कि ये शेर किस मारूफ़ शायर का है किन्तु आज सुबह समाचार पत्रों में जब अरविन्द केजरीवाल की पार्टी की विशेषताओं को पढ़ा तो अरविन्द एक सैय्याद ही नज़र आये .जिन नियमों को बना वे अपनी पार्टी को जनता के द्वारा विशेष दर्जा दिलाना चाहते हैं वे ही उन्हें इस श्रेणी में रख रही हैं .उनके नियम एक बारगी ध्यान दीजिये –

१-एक परिवार से एक सदस्य के ही चुनाव लड़ने का नियम .

२-पार्टी का कोई भी सांसद ,विधायक लाल बत्ती का नहीं करेगा इस्तेमाल .
३-सुरक्षा और सरकारी बंगला नहीं लेंगे सांसद ,विधायक .
४-हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज करेंगे पार्टी पदाधिकारियों पर आरोपों की जाँच .
५-एक रूपये से उपर के सभी चंदे का हिसाब वेबसाईट पर डाला जायेगा .
क्या केवल गाँधी परिवार से अपनी पार्टी को अलग रखने के लिए एक परिवार एक सदस्य का नियम रखा गया है ?जब वकील का बच्चा वकील और डॉक्टर का बच्चा डॉक्टर बन सकता है तो नेता का बच्चा नेता क्यूं नहीं बन सकता ?चुनना तो जनता के हाथ में है .अब किसी नेता के परिवार के सदस्य में यदि हमारे नेतृत्व की ईमानदार नेतृत्व की क्षमता है तो ये नियम हमारे लिए ही नुकसानदायक है और दूसरे इसे बना भ्रष्टाचार पर जंजीरें डालना अरविन्द का भ्रम है हमने देखा है कितने ही लोग एक परिवार के सदस्य न होते हुए भी देश को चूना लगते हैं और मिलजुल कर भ्रष्टाचार करते हैं एक व्यक्ति जो कि ठेकेदारी के व्यवसाय में है  नगरपालिका का सभासद बनता है तो दूसरा [उसका मित्र -परिवार का सदस्य नहीं ]कभी ठेकेदारी का कोई अनुभव न होते हुए भी नगरपालिका से ठेके प्राप्त करता है और इस तरह मिलजुल भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं क्या यहाँ अरविन्द का एक परिवार एक सदस्य  का नियम कारगर रहेगा ?
लाल बत्ती का इस्तेमाल जनता के हितार्थ किया जाये तो इसमें क्या बुराई है कम से कम ये जनता के लिए एक पहचान तो है और इस पहचान को छीन वे कौन से भ्रष्टाचार को रोक पाएंगे ?
सुरक्षा का न लेना ”झीना हिकाका ”वाली स्थिति पैदा कर सकता है क्या ये देश के लिए देश की सुरक्षा के लिए भारी नहीं पड़ेगा ?
और सरकारी बंगला जनता को नेता से जोड़ने के लिए है जिसके माध्यम से सांसद ,विधायक जनता से सीधे जुड़ते हैं और उनके  परिवार के जीवन में कोई अनधिकृत  हस्तक्षेप भी नहीं होता  इसलिए इस नियम को भी व्यर्थ के प्रलाप की श्रेणी में रखा जा सकता है .
हाईकोर्ट जज द्वारा आरोपों की जाँच -क्या गारंटी है रिटायर्ड हाईकोर्ट जज के भ्रष्टाचारी न होने की ?क्या वे माननीय  पी.डी.दिनाकरण जी को भूल गए ?इसलिए ये नियम भी बेकार .
एक रूपये से ऊपर के चंदे का हिसाब -अभी शाम ही एक मेडिकल स्टोर पर देखा एक उपभोक्ता को दवाई के पैसे देने थे २००/-रूपये और उसने दिए १-१ रूपये के सिक्के .अब जो चंदा हिसाब से बाहर रखना होगा वह कहने को ऐसे भी लिया जा सकेगा तो उसका हिसाब कहाँ रखा जायेगा इसलिए ये नियम भी बेकार .
फिर अरविन्द केजरीवाल कह रहे हैं -”कि ये उनकी नहीं आम लोगों की पार्टी होगी ,जहाँ सारा फैसला जनता करेगी .”तो अरविन्द जी ये भारत है जहाँ लोकतंत्र है और जहाँ हर पार्टी जनता की ही है और हर नेता जनता के बीच में से ही सत्ता व् विपक्ष में पहुँचता है फिर इसमें ऐसी क्या विशेषता है जो ये भ्रष्टाचार के मुकाबले में खड़ी हो .अरविन्द जी के लिए तो एक शायर की ये पंक्तियाँ ही इस जंग के लिए मेरी नज़रों में उनके अभियान को सफल बनाने हेतु आवश्यक हैं-
”करें ये अहद कि औजारें जंग हैं जितने उन्हें मिटाना और खाक में मिलाना है ,
करें ये अहद कि सह्बाबे जंग हैं हमारे जितने उन्हें शराफत और इंसानियत सिखाना है .”
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply