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कृतज्ञ दुनिया इस दिन की .

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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एक की लाठी सत्य अहिंसा एक मूर्ति सादगी की,

दोनों ने ही अलख जगाई देश की खातिर मरने के .
जेल में जाते बापू बढ़कर सहते मार अहिंसा में ,
आखिर में आवाज़ बुलंद की कुछ करने या मरने की .
लाल बहादुर सेनानी थे गाँधी जी से थे प्रेरित ,
देश प्रेम में छोड़ के शिक्षा थामी डोर आज़ादी की .
सत्य अहिंसा की लाठी ले फिरंगियों को भगा दिया ,
बापू ने अपनी लाठी से नीव जमाई भारत की .
आज़ादी के लिए लड़े वे देश का नव निर्माण किया ,
सर्व सम्मति से ही संभाली कुर्सी प्रधानमंत्री की .
मिटे गुलामी देश की अपने बढ़ें सभी मिलकर आगे ,
स्व-प्रयत्नों से दी है बढ़कर साँस हमें आज़ादी की .
दृढ निश्चय से इन दोनों ने देश का सफल नेतृत्व किया
ऐसी विभूतियाँ दी हैं हमको कृतज्ञ दुनिया इस दिन की .
शालिनी कौशिक
[कौशल]

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