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शिक्षक दिवस की बधाइयाँ

! मेरी अभिव्यक्ति !
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शिक्षक दिवस की बधाइयाँ


शिक्षक दिवस एक ऐसा दिवस जिसकी नीव ही हमारे दूसरे राष्ट्रपति श्रद्धेय पुरुष डॉ.राधा कृष्णन जी के जन्म  दिवस पर पड़ी .डॉ.राधा कृष्णन जी को श्रृद्धा सुमन अर्पित करने हेतु ही देश प्रतिवर्ष ५ सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है .सर्वप्रथम डॉ.राधाकृष्णन जी को जन्मदिन पर मैं उन्हें ह्रदय से नमन करती हूँ.

.मैं जब बी.ए. में थी तो आगे के लिए करियर चुनने को मुझसे जब कहा एम्.ए.संस्कृत व् आगे पीएच डी.कर शिक्षण क्षेत्र को अपनाने का सुझाव दिया गया तो मैंने साफ इंकार कर दिया क्योंकि मैं अपने में वह योग्यता नहीं देख रही थी जो एक शिक्षक में होती है मेरी मम्मी जिन्होंने हमें हमारे विद्यालय की अपेक्षा उत्तम शैक्षिक वातावरण घर में ही दिया वे शिक्षक बनने के योग्य होने के बावजूद घर के  कामों में ऐसी रमी की उसमे ही उलझ कर रह गयी और कितने ही छात्र छात्राएं जो उनसे स्तरीय शिक्षा प्राप्त कर सकते थे वंचित रह गए..परिवार को प्रथम पाठशाला  और माता को प्रथम शिक्षिका कहा जाता है इसलिए मैंने सबसे पहले  अपनी शिक्षिका अपनी मम्मी को ही इस अवसर पर याद किया है ये उनका ही प्रभाव है कि हमें कभी ट्यूशन के ज़रुरत नहीं पड़ी जबकि हमारे साथ की अन्य छात्राएं लगभग २-३ विषयों के ट्यूशन सारे साल पढ़ती थी और आजकल की आधुनिक मम्मी जब ये कहती हैं कि हमारे बच्चे हमसे नहीं  पढ़ते तब हमारा मन ये मानने को तैयार ही नहीं होता क्योंकि हमारी मम्मी ने मारने की जगह मारकर और समझाने की जगह समझाकर हमें उत्तम शिक्षा प्रदान की है और ये सब उन्होंने तब किया जबकि वे स्वयं एक एडवोकेट हैं कभी समय की  कमी दिखाकर उन्होंने हमारी इस आवश्यकता को नज़रंदाज़ नहीं किया ..

आज शिक्षक विवादों के घेरे में हैं .इसके साथ ही विद्यालय में छात्रों पर दबाव डाला जाता है की वे सम्बंधित विषय के अध्यापक का ट्यूशन लगायें और छात्र अधिक नंबरों के फेर में ऐसा करने को मजबूर हैं हमें ये सब शिक्षक दिवस पर कहना अच्छा नहीं लग रहा है किन्तु ह्रदय की व्यथा तभी सामने आती है जब उसी विषय पर बात की जाती है जिसने ह्रदय को पीड़ित किया है .जहाँ एक ओर हमने अपने विद्यालय में शिक्षिकाओं का पक्षपात पूर्ण रवैया देखा वहीँ हमारी एक शिक्षिका ने वास्तव में अपने आदर्श को हमारे ह्रदय में स्थापित किया और ये बताया कि वास्तव में शिक्षक कैसे होने चाहिए ?

बचपन से लेकर अभी तक के जीवन में हमें अपनी श्रीमती सुरेश बाला गुप्ता दीदी  [यही  कहती थी उस वक़्त छात्राएं अपनी मैडम को] ने हमारा एक अच्छी शिक्षिका की तरह मार्गदर्शन किया और एक अच्छे हमदर्द की भांति साथ निभाया .वे हमसे गलतियाँ  होने पर मारती भी थी और अच्छा काम करने पर खुलकर सराहना भी करती थी .उनकी ये बात हम बच्चों में बहुत सराही गयी थी कि विद्यालय में एक सुन्दर कुशल  न्रित्यान्गना छात्रा  को उन्होंने हमारे कार्यक्रम में से केवल इसलिए अलग कर दिया था कि वह विध्यालय के और बहुत से कार्यक्रमों में भाग ले रही थी उनका  कहना था कि इसे तो सब ले लेंगे अपने कार्यक्रम में मैं तो अपने इन्ही बच्चों को लूंगी

जब एल एल .बी के बाद पी.सी.एस.[जे] के लिए मुझे उर्दू सीखने की आवशयकता थी तब उन्होंने विद्यालय में नव नियुक्त होकर आये उर्दू अध्यापक से हमारी पहचान करायी और उनसे हमें उर्दू सिखाने का आग्रह किया साथ ही मैं आभार व्यक्त करती हूँ उर्दू अध्यापक श्री मुनव्वर हुसैन जी का जिन्होंने हमसे कोई जानकारी न होते हुए भी हमें उर्दू सिखाई और हमसे इसका कोई पारिश्रमिक भी नहीं लिया .

शिक्षक दिवस पर मैं अपने जीवन के इन सभी श्रेष्ठ अध्यापकों को दिल से नमन करती हूँ.

शालिनी कौशिक

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