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तुम मुझको क्या दे पाओगे?

! मेरी अभिव्यक्ति !
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तुम मुझको क्या दे पाओगे?


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तुम भूले सीता सावित्री ,क्या याद मुझे रख पाओगे ,

खुद तहीदस्त हो इस जग में तुम मुझको क्या दे पाओगे?


मेरे हाथों में पल बढ़कर इस देह को तुमने धारा है ,

मन में सोचो क्या ये ताक़त ताजिंदगी भी तुम पाओगे ?


संग चलकर बनकर हमसफ़र हर मोड़ पे साथ निभाया है ,

क्या रख गुरूर से दूरी तुम ताज़ीम मुझे दे पाओगे ?


कनीज़ समझ औरत को तुम खिदमत को फ़र्ज़ बताते हो,

उस शबो-रोज़ क़ुरबानी का क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?


फ़ितरत ये औरत की ही है दे देती माफ़ी बार बार ,

क्या उसकी इस इनायत का इकबाल कभी कर पाओगे?


शहकार है नारी खिलक़त की ”शालिनी ”झुककर करे सलाम ,

इजमालन सुनलो इबरत ये कि खाक भी न कर पाओगे.



शब्दार्थ :तहीदस्त-खाली हाथ ,इनायत- कृपा ,ताजिंदगी -आजीवन

ताज़ीम –दूसरे को बड़ा समझना ,आदर भाव ,सलाम

कनीज़ -दासी ,इजमालन –संक्षेप में ,इबरत -चेतावनी ,

इकबाल -कबूल करना ,शहकार -सर्वोत्कृष्ट कृति ,

खिलक़त-सृष्टि

शालिनी कौशिक

[कौशल ]

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